उड़ने के लिए आसमां रहने के लिए घोसलां परिंदों का यही आशियां
वो सांझ जो कह गई कुछ
सांध्य वेला आजकल इतनी चमत्कारपूर्ण हो जाती है , जैसे आकाश से मेरे सिर पर सांत्वना की वर्षा होती है . संसार के सारे काम करना और लोगों से व्यवहार करना सरल हो जाता है . यह आकाश, आलोक मेरे मन को ढंक लेता है. मेरी दोनों आंखों से मेरे भीतर जैसे एक सवर्णमय धारा प्रवेश करती जा रही हो. सदियों से कवियों ने इसे पुराना नहीं होने दिया .
Write a comment ...